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उज्जैन के अखंड ज्‍योति मंदिर

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अनोखी मूरत, पूजा की अनोखी विधि और उस पर भक्तों का अलग-अलग चढ़ावा. उज्जैन के अखंड ज्‍योति मंदिर में भक्तों को हनुमान का चमत्कार दिखाई देता है. जहां एक तरफ मंदिर में जल रही अखंड ज्योति के दर्शन कर आटे का दीया जलाने भर से साढ़ेसाती से मुक्ति मिल जाती है, वहीं अन्य मनोकामनाओं के लिए भक्त बजरंगबली को अलग-अलग प्रसाद का भोग लगाते हैं. अनोखी रस्म है, बजरंगबली के दरबार में गुहार लगाने का रिवाज भी अनोखा है. अनंत आस्था से श्रद्धालु पवनपुत्र से विनती करते हैं. यहां पवनपुत्र सुनते हैं अपने भक्तों की पुकार और भक्तों का कल्याण करते हैं. महाकाल की नगरी उज्जैन के अखंड ज्योति मंदिर में बजरंगबली की मूर्ति से लेकर यहां होने वाली पूजा की बात निराली है. जहां एक तरफ बजरंगबली की सिंदूरी प्रतिमा भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करती है तो वहीं दूसरी ओर उनके पांव के नीचे दबी लंकिनी राक्षसी उनके पराक्रम की कहानी सुनाती है. कहते हैं लक्ष्मण को बचाने के लिए जब हनुमान संजीवनी लेकर आ रहे थे तो लंकिनी नाम की राक्षसी ने उनका रास्ता रोक कर उन्हें जाने से रोका, जिसके बाद हनुमान, लंकिनी को अपने पैरों के नीचे दबाकर आगे

हनुमान बाहुक

छप्पय सिंधु तरन, सिय-सोच हरन, रबि बाल बरन तनु । भुज बिसाल, मूरति कराल कालहु को काल जनु ॥ गहन-दहन-निरदहन लंक निःसंक, बंक-भुव । जातुधान-बलवान मान-मद-दवन पवनसुव ॥ कह तुलसिदास सेवत सुलभ सेवक हित सन्तत निकट । गुन गनत, नमत, सुमिरत जपत समन सकल-संकट-विकट ॥१॥ स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रवि तरुन तेज घन । उर विसाल भुज दण्ड चण्ड नख-वज्रतन ॥ पिंग नयन, भृकुटी कराल रसना दसनानन । कपिस केस करकस लंगूर, खल-दल-बल-भानन ॥ कह तुलसिदास बस जासु उर मारुतसुत मूरति विकट । संताप पाप तेहि पुरुष पहि सपनेहुँ नहिं आवत निकट ॥२॥ झूलना पञ्चमुख-छःमुख भृगु मुख्य भट असुर सुर, सर्व सरि समर समरत्थ सूरो । बांकुरो बीर बिरुदैत बिरुदावली, बेद बंदी बदत पैजपूरो ॥ जासु गुनगाथ रघुनाथ कह जासुबल, बिपुल जल भरित जग जलधि झूरो । दुवन दल दमन को कौन तुलसीस है, पवन को पूत रजपूत रुरो ॥३॥ घनाक्षरी भानुसों पढ़न हनुमान गए भानुमन, अनुमानि सिसु केलि कियो फेर फारसो । पाछिले पगनि गम गगन मगन मन, क्रम को न भ्रम कपि बालक बिहार सो ॥ कौतुक बिलोकि लोकपाल हरिहर विधि, लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खबार सो। बल कैंधो बीर रस ध