श्री पिलुआ महावीर मंदिर
मंिदर म हनुमान जी की मुख से लगातार आती है राम नाम की नी, चलती हसांस
मंदर के पुजार ने बताया क ये हनुमान ापर युग से है। महाभारत के एक संग को बताते ए उहने कहा क तापनेर नगर के राजा कुमदेव सह को तुलसीदास ने इस मूत के बारेम बताया था, तब इसे नकाला गया। राजा कुमदेव इस मूत को अपने नगर ले जाना चाहते थे, लेकन हनुमान जाने को तैयार नह थे। हनुमान जी ने राजा को वन कहा क अगर मुझे यहां से ले जाना चाहते हो तो मेरा पेट भर दो। राजा अभमान म आकर हनुमान जी को ध पलाने लगे, लेकन पूरेनगर का ध मंगवाकर भी वो उनका मुखारवद भर नह पाए। तब रानी ने मा मांगते ए ा से एक छोटे से लोटे म ध भरकर हनुमान जी को पलाया। जनसे उनका मुखारवद भरकर तृत हो गया। पुजार ने बताया क पलुआ वाले महावीर के नाम से इस मंदर को जो सी मली उसके बारेम लोग ादा नह जानते। पलुआ एक जंगली पेड़ होता है, जसक जड़ के नीचे हनुमान जी दबे ए थे। राजा ने उह नकलवाया था और वहां एक छोटा सा मंदर बनवा दया था। तब से इनका नाम पलुआ वाले महावीर पड़ गया। पलुआ वाले महावीर क सबसे बड़ी रहयमयी बात उनका मुखारवद है। इनके मुखारवद म साद वप जो भी लडाला जाता है वो सीधा उनके अंदर जाता है। वष से ये म ऐसे ही चलता आ रहा है। कसी को नह पता आखर यह जाता कहां है।
ेक मंगलवार को यहां ालु क भीड़ रहती है और बुढ़बा मंगल को रात 12 बजे के बाद से यहां तल रखने क जगह नह होती। नया का शायद ये पहला ऐसा मंदर होगा जंहा हनुमान जी जीवत अवथा म दखाई देते ह। इस बात क गवाही उनका मुखारवद वय देता है। वो हर पल सांस लेते ए आज भी देखे जा सकते ह।
हनुमान जी के चमारों सेसभी बखूबी वािकफ हऔर कहा भी जाता हैकी हनुमानजी को अजर अमर होने का वरदान िमला है। इसिलए वे आज भी धरती पर िवराजमान ह। दुिनयाभर ममाहवीर बजरंग बली के कई चमारी मंिदर हजहां लोगों की आथा जुड़ी है। उींमंिदरों मसेएक मंिदर ऐसा भी हैजहां हनुमान जी भों की मुराद तो पूरी करतेह ब उनके होनेका अहसास भी िदलातेह। जी हां, मंिदर ममौजूद मूितसाद खाती है और मूितके आसपास राम नाम की नी भी सुनाई देती है। यही चमार मंिदर महनुमान जी के होनेका संकेत देती है। यह मंिदर उरदेश के इटावा सेकरीब 12 िकलोमीटर की दूरी पर थाना िसिवल लाइन े के गांव रा के पास यमुना नदी के िनकट िपलुआ महावीर मंिदर है। इस मंिदर सेआसपास के िजलों सिहत दूर-दूर सेभी भों की भीड़ उमड़ती है। यहां दशन करनेआए भों की महावीर जिटल सेजिटल रोग ठीक कर देतेह।
हनुमान जी की मूितखाती हैसाद लोगों की माताओं के अनुसार यहां मंिदर मथािपत हनुमान जी की मूितसाद खाती है। इसके अलावा मूितके मुख सेलगातार राम नाम की नी सुनाई देती हैऔर मूितमसांस चलनेका आभास भी होता है। मंिदर मथािपत हनुमान जी दिण की तरफ मुंह करके लेटे ह। मूितके मुंह मिजतना भी साद के प मलड्डूऔर दूध चढ़ाया जाता हैवह कहां गायब हो जाता है, इसके बारेमआजतक कोई पता नहींलगा पाया है। येहैचमारी मंिदर का इितहास अगर इस मंिदर के इितहास पर नजर डालतो आपको बता दिक करीब तीन सौ साल पूव यह े तापनेर के राजा चं ताप िसंह चौहान के अधीन था। उनको ी हनुमानजी नेअपनी ितमा यहां होनेका िदया था। इसके तहत राजा चं इस थान पर आए और ितमा को उठानेका यास िकया पर वेउठा नहींसके। इस पर उोनं ेिविध-िवधान सेइसी थान पर ितमा की थापना कराकर मंिदर का िनमाण कराया। दिणमुखी लेटी ई हनुमान जी की इस ितमा के मुख तक हर समय पानी नजर आता है। चाहेिजतना साद एक साथ मुख मडाला जाए, सब कुछ उनके उदर मसमा जाता है। अभी तक कोई भ उनके उदर को नहीं भर सका और न यह पता चला िक यह साद कहां चला जाता है।
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